क्या स्वाइन फ्लू जानलेवा है – Is swine flu dangerous?

दोस्तों पिछले साल सर्दियों में टाइप ए, सबटाइप एच1एन1 वायरस या स्वाइन फ्लू के कारण भारत के कई भागों में इन्फ्लूएंजा में वृद्धि हुई. यह वही वायरस है जिससे 2009 में दुनियाभर में महामारी फैल गई थी. यह 2010 में भी फैलता रहा, उसके बाद कुछ साल तक सुस्त रहा और 2013 में रुक-रुक कर नजर आता रहा. फरवरी 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने घोषित किया कि इस वायरस को मौसमी इन्फ्लूएंजा स्ट्रेन माना जाए. दूसरे शब्दों में, यह वायरस अन्य मौसमी फ्लू वायरसों (जैसे ए/एच3एन2 या बी) से अलग नहीं है, जो इन्फ्लूएंजा के हर मौसम में नियमित तौर पर फैलते रहते हैं.  Is swine flu dangerous

2014 में इन्फ्लूएंजा कम सक्रिय था. ए/एच1एन1 बहुत ज्यादा नजर नहीं आया था. बल्कि 2011 के बाद से, इन्फ्लूएंजा वायरस ए/एच3एन2 और इन्फ्लूएंजा बी ज्यादा प्रभावी रहे. लेकिन जब कोई एक विशेष इन्फ्लूएंजा वायरस लंबे समय तक फैला रहता है, तो अधिकांश व्यक्ति उससे प्रतिरक्षा विकसित कर लेते हैं. इसके बाद, कोई अन्य मौसमी स्ट्रेन लोगों को संक्रमित करना शुरू कर देता है. यह चक्रीय पैटर्न मौसमी इन्फ्लूएंजा की खासियत है. इन्फ्लूएंजा का मुख्य मौसम मॉनसून के साथ आता है. कभी-कभी इन्फ्लूएंजा वायरस की सक्रियता ठंड के मौसम में भी बढ़ जाती है, जिसका एक छोटा-मोटा चरम जनवरी-मार्च में आता है.

घबराएं नहीं:
पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान ने जीन सिक्वेंसिंग से पुष्टि की है कि इस साल फैले ए/एच1एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है. मौजूदा टीकों से बीमारी से बचाव हो जाना चाहिए और मौजूदा एंटीवायरल दवाइयां (मसलन, ओजेलटेमिविर) अब भी प्रभावी हैं.

अधिकांश रोगियों में इन्फ्लूएंजा के वायरस की वजह से (इन्फ्लूएंजा ए/एच1एन1 स्ट्रेन सहित) खांसी या गले की खराश के साथ सिर्फ हल्का बुखार होता है. यह बीमारी कुछ दिन तक रहती है, जिसके बाद अधिकांश रोगी परीक्षण या उपचार की आवश्यकता के बिना ही ठीक हो जाते हैं.

ज्यादा जोखिम कहां है:
फिर भी, सभी इन्फ्लूएंजा वायरस, भले ही उनका टाइप और सब-टाइप कुछ भी हो, (इन्फ्लूएंजा ए/एच1एन1 हो अथवा ए/एच3एन2 या बी हो) कुछ ज्यादा जोखिम वाले समूहों में गंभीर बीमारी पैदा कर सकते हैं. ज्यादा जोखिम वाले लोगों में बुजुर्ग (60 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले), पहले से ही खतरे के दायरे में होने के फैक्टर (मसलन, दमा) वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और फेफड़ों, गुर्दे या हृदय पर असर डालने वाले लंबे समय से चले आ रहे खतरनाक रोगों से पीडि़त लोग शामिल हैं. इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनकी जांच में मधुमेह, प्रतिरोधक क्षमता की कमी (जैसे, एचआइवी संक्रमण, लंबे समय तक स्टीरॉयड उपचार) या कैंसर पाया गया हो.

अगर ज्यादा जोखिम वाले रोगियों के लक्षण और संकेत तेज बुखार तथा गंभीर खांसी या गले में खराश जैसे दिखते हों, तो सरकारी दिशा निर्देशों के अनुसार उन्हें परीक्षण की आवश्यकता के बिना, एंटीवायरल दवा के साथ उपचार की सलाह दी जाती है. उन्हें श्वास मार्ग के सेकंडरी बैक्टीरियल संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स के एक कोर्स की जरूरत भी हो सकती है, जो इन्फ्लुएंजा के पीछे-पीछे हो सकता है. परीक्षण और उपचार उनके लिए आवश्यक हैं, जिनमें तेज बुखार और खांसी के अलावा श्वास मार्ग के निचले भाग में और फेफड़ों में (वायरल न्यूमोनिया) संक्रमण के लक्षण दिखते हैं.

सांस लेने में परेशानी, सीने में दर्द, उनींदापन, ब्लड प्रेशर में गिरावट, थूक में खून आने, नाखूनों के हल्का नीला पड़ने और साथ ही साथ अधिक जोखिम वाले रोगियों की पुरानी बीमारी की बिगड़ती स्थिति पर नजर रखनी चाहिए. पांच साल से कम उम्र के बच्चों में छोटी-छोटी सांस चलना और सांस लेने में तकलीफ, तेज और लगातार बुखार, भोजन न करना और मरोड़ भी खतरे के संकेत हैं.

आंकड़े भ्रामक हैं :
यह समझना अहम है कि जिस मृत्यु दर का समाचार मिल रहा है, वह अधिकांशत: प्रयोगशाला से पुष्टि किए गए उन सबसे बुरी तरह प्रभावित रोगियों को जताती है, जिन्हें परीक्षण की सलाह दी गई थी. एक काल्पनिक चित्रण करें. यदि एक समुदाय में इन्फ्लूएंजा के 1,000 मामले पाए जाते हैं, तो हो सकता है, वास्तव में सिर्फ 100 अस्पताल गए होंगे या उनके परीक्षण की आवश्यकता हुई होगी. इनमें से यदि बीमारी के शिकार 10 होते हैं, तो मृत्यु दर का प्रतिशत 1,000 को विभाजक मानकर (यानी 1 फीसदी) निकाला जाना चाहिए, न कि 100 को विभाजक मानकर (10 फीसदी) निकाला जाना चाहिए.

जब किसी समुदाय में मौसमी इन्फ्लूएंजा उतने व्यापक स्तर पर फैल गया हो, जैसे इस वर्ष फैला है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग हल्के इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी से प्रभावित हुए हों, तो विभाजक संख्या (समुदाय में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या, न कि सिर्फ अस्पतालों या प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिए पहुंचने वालों की संख्या) सही रूप में ज्ञात नहीं हो सकती. प्रयोगशाला परीक्षण पर आधारित आकलन गंभीरता की अतिरंजना दर्शा सकता है और दहशत पैदा कर सकता है.

सावधानी बरतें:
यह बात अहम है कि हम इन्फ्लूएंजा के प्रसार को रोकने के लिए सरल सावधानियां बरतें. जिन्हें इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी हो, उन्हें खांसी के समय वाला व्यवहार करना चाहिए (जैसे खांसते समय एक साफ रूमाल से मुंह को ढकना) और अपने हाथ नियमित रूप से धोने चाहिए. उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बचना चाहिए और संक्रमण को फैलने से बचाने के लिए कुछ दिन के लिए काम से छुट्टी ले लेनी चाहिए. जो लोग अधिक जोखिम वाले समूहों में हैं, वे इन्फ्लूएंजा का टीका लगवाने पर विचार कर सकते हैं. Is swine flu dangerous

 

डॉ. ललित डार,एम्स, माइक्रोबायोलाजी विभाग

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