चुनावी मौसम में तेज़ी से फैल रही हैं ये बीमारियाँ, कहीं आप इसके चपेट मे तो नहीं

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आसमान से बरसती आग से जहां तन झुलस रहा है तो वहीं लोकसभा चुनाव की तपिश का असर लोगों के मन-मष्‍तिक पर भी गहरा प्रभाव डाल रही है. इस चुनावी मौसम में भारत में दो बीमारियां काफी तेजी से फैल रही हैं. Diseases spreading during loksabha elections 2019

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एक अनुमान के मुताबिक करीब एक करोड़ लोग इसके चपेट में हैं. न तो ये वायरस जनित रोग है और न ही जीवाणु द्वारा फैलाया गया. यह मनोरोग है और तेजी से सोशल मीडिया के जरिए फैल रहा है.

जी हां, वैसे तो चुनाव नतीजे 23 मई को आने वाले हैं लेकिन ‘मेनिया’ और ‘फोबिया’ नामक दो बीमारियां अपने पीक पर हैं. मनोवैज्ञानिक सिमरनजीत कौर बताती हैं कि मेनिया में मरीज का मन अधिक प्रसन्न होने के कारण वह खुद को बढ़ा-चढ़ाकर देखता है. अधिक सजना-संवरना, नई-नई चीजें खरीदना, नए काम शुरू कर देना, खुद को शक्तिशाली या अधिक धनी मानने लगना. जब मरीज को ऐसा करने से रोका जाता है तो वह अत्याधिक गुस्सा या मारपीट भी करने लगता है. जिस वहज से व्‍यक्‍ति ऐसा करता है बीमारी का नाम वही पड़ जाता है.

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इस चुनावी मौसम में सोशल मीडिया पर दो तरह की पोस्‍टों की बाढ़ आ गई है. या तो वर्तमान सरकार के विरोध में या उनके पक्ष में. वर्तमान पीएम को चाहने वाले उनकी पूजा, उनके नाम का जाप भी कर रहे हैं. अक्‍सर वो अपनी क्षमता से अधिक ऊर्जावाान दिखता है. परंतु विरोधी ऐसे समर्थकों को भक्‍त का दर्जा दे रहे हैं तो समर्थक उन्‍हें चमचा और देशद्रोही. वैचारिक मतभेद का स्‍तर अब मेनिया और फोबिया का रूप लेने लगा है.

इस रोग में दूसरी अवस्था होती है डिप्रेशन. इसमें रोगी उदास रहता है कम बात करता है, खुद को दोषी महसूस करता है, आत्मविश्वास की कमी हो जाती है अकेला महसूस करने लगता है, कम बोलता है और मन में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं.

ये हैं कुछ अहम कारण:

आनुवांशिक – यह बीमारी आनुवांशिक भी होती है. यदि परिवार का कोई सदस्य इस बीमारी से पीड़ित होता है तो उसके बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका अधिक होती है.

दिमागी असंतुलन – इस बीमारी में दिमाग के अंदर न्यूरोट्रांसमीटर जैसे डोपीमीन, सेरोटोनिन, या नोर-एड्रेनलीन आदि दिमागी केमिकल असंतुलित हो जाते हैं. इससे मूड को नियंत्रित करने वाला सिस्टम गड़बड़ा जाता है और मनुष्य इस रोग का शिकार हो जाता है.

आसपास का माहौल – इस बीमारी का एक प्रमुख कारण व्यक्ति के आसपास के माहौल को भी माना जाता है. परिवार के किसी व्यक्ति की असमय मौत, माता-पिता में तलाक, कोई दर्दनाक हादसा, या कोई बुरी घ्ाटना या कुछ असामान्य घटित होना भी इसका एक कारण माना जाता है.

नशा – अत्याधिक नशा भी इस रोग का एक प्रमुख कारण होता है. कई मामलों में यह रोग स्वयं भी हो सकता है.

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ये हैं लक्षण:

मूड बदलना – अचानक खुश होना या एकदम उदास होना. कभी-कभी दोनों लक्षण एक साथ नजर आते हैं. इस स्थिति को मूड एपिसोड कहा जाता है. इसमें रोगी के चिड़चिड़ा होने, अधिक आक्रामक होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

नींद का असमान्य होना – इस रोग में रोगी नींद को बेकार की चीज समझने लगता है और हमेशा जागते रहने की कोशिश करता है.

निराशा – व्यक्ति निराशावादी हो जाता है और यह निराशा उस पर लगातार हावी होने लगती है और वह खुद को असहाय महसूस भी करता है.

व्यवहार में बदलाव – इस रोग के कारण रोगी के व्यवहार में अचानक बहुत ज्यादा उत्साह या निराशा देखी जाती है. रोगी खुद को उच्चतर मानने लगता है या शक्तिशाली समझता है. जोखिमपूर्ण कार्य या व्यवहार करता है या एकदम निराश होकर एकाकी हो जाता है.

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रोग की अवधि:

यह एक ऐपिसोडिक रोग है. यह ऐपिसोड में आता है. एक मरीज में एक या अधिक ऐपिसोड हो सकते है. एक ऐपिसोड एक माह से नौ माह तक का हो सकता है. इस रोग में एक औसतन मरीज में तीन से छह तक एपिसोड होते हैं. इस दौरान मरीज कभी मानसिक रोगी हो जाता है और कभी ठीक हो जाता है.

क्‍या है फोबिया:

फोबिया एक तरह का मानसिक रोग है, जिसमें इंसान को किसी एक खास चीज को लेकर डर लगने लगता है. ये डर जरूरी नहीं है कि हकीकत में ही हो, बल्कि अक्सर काल्पनिक चीजों को लेकर वो शख्स डर में जीने लगता है.

फोबिया से ग्रस्त व्यक्ति किसी भी अंजान शख्स के सामने आने से, उनसे बात करने से घबराता है. उसके भीतर हमेशा यह डर रहता है कि कहीं वह कुछ गलत न बोल दे. कहीं उसकी इमेज न खराब हो जाए. ऐसे लोग बहुत संकोची और अपने आप में ही सिमटे रहते हैं.

जिन लोगों को फोबिया का दौरा पड़ता है, उन्हें तनाव, बेचैनी, पसीने आना, लोगों से दूर भागना, सिर में भारीपन, कानों में अलग-अलग आवाजें सुनाई देना, दिल की धड़कन बढ़ जाना, सांस तेज होना, डायरिया, चक्कर आना, शरीर में कहीं भी दर्द महसूस करना, जैसी दिक्कतें आती हैं.

जिन लोगों को फोबिया का दौरा पड़ता है, उन्हें तनाव, बेचैनी, पसीने आना, लोगों से दूर भागना, सिर में भारीपन, कानों में अलग-अलग आवाजें सुनाई देना, दिल की धड़कन बढ़ जाना, सांस तेज होना, डायरिया, चक्कर आना, शरीर में कहीं भी दर्द महसूस करना, जैसी दिक्कतें आती हैं. ऐसे में रोगी बहुत ज्यादा पैनिक हो जाता है.

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फोबिया के इलाज के लिए कोई एक खास ट्रीटमेंट नहीं होता है, हर मरीज का फोबिया और उसकी स्थिति अलग-अलग होती है. कॉग्निटिव बिहेवियूरल थेरपी फोबिया के लिए अच्छा इलाज माना जाता है. जिसमें मरीज की सोच में बदलाव लाया जाता है. फोबिया के इलाज के लिए कोई एक खास ट्रीटमेंट नहीं होता है, हर मरीज का फोबिया और उसकी स्थिति अलग-अलग होती है. कॉग्निटिव बिहेवियूरल थेरपी फोबिया के लिए अच्छा इलाज माना जाता है. जिसमें मरीज की सोच में बदलाव लाया जाता है. Diseases spreading during loksabha elections 2019

Ref: From NEWS STATE

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